वैश्रवण: Difference between revisions
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<li> आकाशोपपन्न देवों में से एक–देखें [[ देव#II.3 | देव - II.3 ]]। | <li> आकाशोपपन्न देवों में से एक–देखें [[ देव#II.3 | देव - II.3 ]]। </li> | ||
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<li> हिमवान् पर्वत का एक कूट व उसका रक्षक–देखें [[ लोक#5.4 | लोक - 5.4 ]]। </li> | <li> हिमवान् पर्वत का एक कूट व उसका रक्षक–देखें [[ लोक#5.4 | लोक - 5.4 ]]। </li> |
Revision as of 22:44, 22 July 2020
== सिद्धांतकोष से ==
- लोकपाल देवों का एक भेद–देखें लोकपाल ।
- आकाशोपपन्न देवों में से एक–देखें देव - II.3 ।
- विजयार्ध की दक्षिण श्रेणी का एक नगर–देखें विद्याधर ।
- हिमवान् पर्वत का एक कूट व उसका रक्षक–देखें लोक - 5.4 ।
- विजयार्ध पर्वत का एक कूट व उसका रक्षक देव–देखें लोक - 5.4 ।
- पद्म ह्नद के वन में स्थित एक कूट–देखें लोक - 5.7 ।
- रुचक पर्वत का एक कूट–देखें लोक - 5.13 ।
- पूर्व विदेह का एक वक्षार व उसका कूट तथा रक्षक देव–देखें लोक - 5.3 ।
- मानुपोत्तर पर्वत के कनककूट का रक्षक सुपर्ण, कुमार देव–देखें लोक - 5.10 ।
- पद्मपुराण /7/ श्लोक-यक्षपुर के धनिक विश्रवस का पुत्र था ।129 । विद्याधरों के राजा इन्द्र द्वारा प्रदत्त लंका का राज्य किया, फिर रावण द्वारा परास्त किया गया ।246। अन्त में दीक्षित हो गया ।251।
- महापुराण /66/ श्लोक-कच्छकावती देश के वीतशोक नगर का राजा था ।2 । तप कर तीर्थंकर प्रकृति का बन्ध किया और मरकर अपराजित विमान में अहमिन्द्र हुआ ।14-16 । यह मल्लिनाथ भगवान् का पूर्व का दूसरा भव है ।–देखें मल्लिनाथ ।
पुराणकोष से
(1) पूर्वविदेह का सीता नदी और निषध-कुलाचल का एक वक्षारगिरि । महापुराण 63. 202, हरिवंशपुराण 5.229
(2) जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में विजयार्ध पर्वत के नौ कूटों में नौवाँ कूट । हरिवंशपुराण 5.28
(3) हिमवत्-कुलाचल के ग्यारह कूटों में ग्यारहवाँ फूट । हरिवंशपुराण 5.55
(4) ऐरावत क्षेत्र में विजयार्ध पर्वत के नौ कूटों में नौवां कूट । हरिवंशपुराण 5.112
(5) कुबेर का एक नाम । हरिवंशपुराण 61. 18
(6) जम्बूद्वीप के विजयार्ध पर्वत की दक्षिण श्रेणी का तैंतालीसवाँ नगर । महापुराण 19.51, 53
(7) तीर्थंकर मल्लिनाथ के दूसरे पूर्वभव का जीव-कच्छकावती देश के वीतशोक नगर का नृप । यह वज्रपात से वटवृक्ष के समूल विनाश को देखकर संसार से भयभीत हुआ । फलस्वरूप पुत्र को राज्य देकर मुनि नाग के पास यह दीक्षित हो गया । तप करके तीर्थंकरप्रकृति का बन्ध करने के पश्चात् मरकर यह अपराजित विमान में अहमिन्द्र हुआ । महापुराण 66.2-3, 11-16
(8) भरतक्षेत्र के मध्य देश में रत्नपुर नगर का सेठ । इसकी पत्नी गोतमा और पुत्र श्रीदत्त था । महापुराण 67.90-94
(9) जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में कुरुजांगल देश के हस्तिनापुर नगर का एक सेठ । इसने मुनिराज समुद्रसेन को आहार देने के बाद मुनिराज के पीछे-पीछे आये हुए गौतम ब्राह्मण को भोजन कराया था । फलस्वरूप गौतम ने इससे प्रभावित होकर मुनि सागरसेन से दीक्षा ले ली थी । महापुराण 70. 160-176
(10) यक्षपुर के धनिक विश्रवस और कौतुक मंगल नगर के राजा व्योमबिन्दु विद्याधर की बड़ी पुत्री कौशिकी का पुत्र । इन्द्र विद्याधर ने इसे पाँचवाँ लोकपाल तथा लंका का राजा बनाया था । दशानन का यह मौसेरा भाई था । युद्ध में यह रावण से पराजित हुआ । अन्त में दिगम्बर दीक्षा लेकर इसने तप किया और तपश्चरण करते हुए मरकर परमगति पायी । पद्मपुराण 7.127-132, 236, 8.239-240, 250-251