रत्न: Difference between revisions
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<p id="1"> (1) चक्रवर्ती के यहाँ स्वयमेव प्रकट होने वाली उसके भोगोपयोग की सामग्री । यह दो प्रकार की होती है― सजीव और अजीव । दोनों में सात-सात वस्तुएं होती हैं । कुल वस्तुएँ चौदह होती हैं । इनमें अजीव रत्न हैं― चक्र, छत्र, दंड, असि, मणि, चर्म और काकिणी तथा सजीवरत्न हैं― सेनापति, गृहपति, गज, अश्व, स्त्री, सिलावट और पुरोहित । <span class="GRef"> महापुराण 37. 83-84, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 5.45, 55-56 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1"> (1) चक्रवर्ती के यहाँ स्वयमेव प्रकट होने वाली उसके भोगोपयोग की सामग्री । यह दो प्रकार की होती है― सजीव और अजीव । दोनों में सात-सात वस्तुएं होती हैं । कुल वस्तुएँ चौदह होती हैं । इनमें अजीव रत्न हैं― चक्र, छत्र, दंड, असि, मणि, चर्म और काकिणी तथा सजीवरत्न हैं― सेनापति, गृहपति, गज, अश्व, स्त्री, सिलावट और पुरोहित । <span class="GRef"> महापुराण 37. 83-84, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 5.45, 55-56 </span></p> | ||
<p id="2">(2) रुचक पर्वत की ऐशान दिशा का एक कूट । यहाँँ विजयादेवी रहती है । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.725 </span></p> | <p id="2">(2) रुचक पर्वत की ऐशान दिशा का एक कूट । यहाँँ विजयादेवी रहती है । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.725 </span></p> | ||
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Revision as of 16:56, 14 November 2020
सिद्धांतकोष से
- चक्रवर्ती, बलदेव व नारायण के वैभव−देखें शलाकापुरुष - 2, 3, 4;
- चक्रवर्ती की नवनिधियों में से एक निधि−देखें शलाका पुरुष - 2, 3, 4 ;
- रुचक पर्वतस्थ एक कूट−देखें लोक - 7 ।
पुराणकोष से
(1) चक्रवर्ती के यहाँ स्वयमेव प्रकट होने वाली उसके भोगोपयोग की सामग्री । यह दो प्रकार की होती है― सजीव और अजीव । दोनों में सात-सात वस्तुएं होती हैं । कुल वस्तुएँ चौदह होती हैं । इनमें अजीव रत्न हैं― चक्र, छत्र, दंड, असि, मणि, चर्म और काकिणी तथा सजीवरत्न हैं― सेनापति, गृहपति, गज, अश्व, स्त्री, सिलावट और पुरोहित । महापुराण 37. 83-84, वीरवर्द्धमान चरित्र 5.45, 55-56
(2) रुचक पर्वत की ऐशान दिशा का एक कूट । यहाँँ विजयादेवी रहती है । हरिवंशपुराण 5.725