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ऐसे 14 भेद में हर एक के पर्याप्त, निर्वृत्यपर्याप्त व लब्ध्यपर्याप्त, इस तरह 42 भेद हुए।</p> | ऐसे 14 भेद में हर एक के पर्याप्त, निर्वृत्यपर्याप्त व लब्ध्यपर्याप्त, इस तरह 42 भेद हुए।</p> | ||
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Revision as of 17:08, 4 September 2022
एकेंद्रिय जीवों के 42 भेद हैं-
पृथ्वी, जल, तेज, वायु, साधारण वनस्पति, और प्रत्येक वनस्पति । प्रत्येक वनस्पति के दो भेद - सप्रतिष्ठित और अप्रतिष्ठित। इस तरह एकेंद्रिय जीवों के सात भेद हुए।
इन सात के सूक्ष्म व बादर की अपेक्षा 14 भेद हुए।
ऐसे 14 भेद में हर एक के पर्याप्त, निर्वृत्यपर्याप्त व लब्ध्यपर्याप्त, इस तरह 42 भेद हुए।
(जै.सि.प्र. 54-57) - देखें बृहत् जैन शब्दार्णव/ द्वि. खंड।
इन्द्रिय | एकेन्द्रिय | द्वीन्द्रिय | त्रीन्द्रिय | चतुरिन्द्रिय | असंज्ञी पन्चेन्द्रिय | संज्ञी पन्चेन्द्रिय |
---|---|---|---|---|---|---|
स्पर्शन | 400 धनुष | 800 धनुष | 1600 धनुष | 3200 धनुष | 6400 धनुष | 9 योजन |
रसना | -- | 64 धनुष | 128 धनुष | 256 धनुष | 512 धनुष | 9 योजन |
घ्राण | -- | -- | 100 धनुष | 200 धनुष | 400 धनुष | 9 योजन |
चक्षु | -- | -- | -- | 2954 योजन | 5908 योजन | 47262x7/20 योजन |
श्रोत्र | -- | -- | -- | -- | 8000 धनुष | 12 योजन |
मन | -- | -- | -- | -- | -- | सर्वलोकवर्ती |