कुलभूषण: Difference between revisions
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<li>प.प्र./३९/श्लोक....वंशधर पर्वत पर ध्यानस्थ इन पर अग्निप्रभ देव ने घोर उपसर्ग किया (१५) वनवासी राम के आने पर देव तिरोहित हो गया (७३) तदन्नतर इनको केवलज्ञान की प्राप्ति हो गयी (७५)। </li> | |||
<li>नन्दिसंघ के देशीयगण की गुर्वावली के अनुसार (देखें - [[ इतिहास | इतिहास ]]) आविद्ध करण पद्मनन्दि कौमारदेव सिद्धान्तिक के शिष्य तथा कुलचन्द्र के गुरु थे। समय−१०८०−११५५ (ई॰ १०२३−१०७८) (ष.ख./२ H. L. Jain) देखें - [[ इतिहास#7.5 | इतिहास / ७ / ५ ]]। </li> | |||
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Revision as of 21:19, 24 December 2013
- प.प्र./३९/श्लोक....वंशधर पर्वत पर ध्यानस्थ इन पर अग्निप्रभ देव ने घोर उपसर्ग किया (१५) वनवासी राम के आने पर देव तिरोहित हो गया (७३) तदन्नतर इनको केवलज्ञान की प्राप्ति हो गयी (७५)।
- नन्दिसंघ के देशीयगण की गुर्वावली के अनुसार (देखें - इतिहास ) आविद्ध करण पद्मनन्दि कौमारदेव सिद्धान्तिक के शिष्य तथा कुलचन्द्र के गुरु थे। समय−१०८०−११५५ (ई॰ १०२३−१०७८) (ष.ख./२ H. L. Jain) देखें - इतिहास / ७ / ५ ।