पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 104 - समय-व्याख्या: Difference between revisions
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Latest revision as of 13:26, 30 June 2023
अभिवंदिऊण सिरसा अपुणब्भवकारणं महावीरं । (104)
तेसिं पयत्थभंगं मग्गं मोक्खस्स वोच्छामि ॥112॥
अर्थ:
अपुनर्भव (मोक्ष) के कारण-भूत महावीर भगवान को शिर झुकाकर नमस्कार करके, उनके (छह द्रव्यों के) पदार्थ भंग को और मोक्ष के मार्ग को कहूँगा ।
समय-व्याख्या:
(( (कलश--7)
द्रव्यस्वरूपप्रतिपादनेन
शुद्धं बुधानामिह तत्त्वमुक्तम् ।
पदार्थभङ्गेन कृतावतारं
प्रकीर्त्यते सम्प्रति वर्त्म तस्य ॥७॥))
आप्तस्तुतिपुरस्सरा प्रतिज्ञेयम् ।
अमुना हि प्रवर्तमानमहाधर्मतीर्थस्य मूलकर्तृत्वेनापुनर्भवकारणस्य भगवतःपरमभट्टारकमहादेवाधिदेवश्रीवर्द्धमानस्वामिनः सिद्धिनिबन्धनभूतां भावस्तुतिमासूत्र्य, कालकलितपञ्चास्तिकायानां पदार्थविकल्पो मोक्षस्य मार्गश्च वक्त व्यत्वेन प्रतिज्ञात इति ॥104॥
समय-व्याख्या हिंदी :
यहाँ (इस शास्त्र के प्रथम श्रुत-स्कंध में) द्रव्य स्वरूप के प्रतिपादन द्वारा बुद्ध पुरुषों को (बुद्धिमान जीवों को) शुद्ध तत्त्व (शुद्धात्म-तत्त्व) का उपदेश दिया गया । अब पदार्थ-भेद द्वारा उपोद्घात करके (नव पदार्थ-रूप भेद द्वारा प्रारम्भ करके) उसके मार्ग का (शुद्धात्म-तत्त्व के मार्ग का अर्थात उसके मोक्ष के मार्ग का) वर्णन किया जाता है ॥कलश-७॥
यह, आप्त की स्तुतिपूर्वक प्रतिज्ञा है।
प्रवर्तमान महाधर्मतीर्थ के मूलकर्तारूप से जो १अपुनर्भव के कारण हैं ऐसे भगवान, परम भट्टारक, महादेवाधिदेव श्री वर्धमानस्वामी की, सिद्धत्व के निमित्तभूत भावस्तुति करके, काल सहित पंचास्तिकाय का पदार्थभेद (अर्थात छह द्रव्यों का नव पदार्थरूप भेद) तथा मोक्ष का मार्ग कहने की इन गाथा सूत्र में प्रतिज्ञा की गयी है ॥१०४॥
१अपुनर्भव = मोक्ष (परमपूज्य भगवान श्री वर्धमान स्वामी, वर्तमान में प्रवर्तित जो रत्नत्रयात्मक महाधर्मतीर्थ उसके मूलप्रतिपादक होने से, मोक्षसुखरूपी सुधारस के पिपासु भव्यों को मोक्ष के निमित्तभूत हैं। )