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| <p>(जै.सि.प्र. 54-57) - देखें बृहत् जैन शब्दार्णव/ द्वि. खंड।</p> | | <p>(जै.सि.प्र. 54-57) - देखें बृहत् जैन शब्दार्णव/ द्वि. खंड।</p> |
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| | | '''नोट''' औदयिक भावों के उत्तर भेद''<br> |
| {| class="wikitable"
| | औदयिक भाव के इक्कीस भेद हैं। चार गति, चार कषाय, तीन लिंग, एक -एक मिथ्यादर्शन, अज्ञान, असंयम, असिध्द भाव और छह लेश्याएँ। |
| |+ क्षेत्र की अपेक्षा उत्कृष्ट विषय
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| ! इन्द्रिय !! एकेन्द्रिय !! द्वीन्द्रिय !! त्रीन्द्रिय !! चतुरिन्द्रिय !! असंज्ञी पन्चेन्द्रिय !! संज्ञी पन्चेन्द्रिय
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| | स्पर्शन|| 400 धनुष|| 800 धनुष || 1600 धनुष|| 3200 धनुष || 6400 धनुष|| 9 योजन
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| | रसना || -- || 64 धनुष|| 128 धनुष|| 256 धनुष|| 512 धनुष || 9 योजन
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| | घ्राण|| -- || -- || 100 धनुष|| 200 धनुष|| 400 धनुष|| 9 योजन
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| | चक्षु|| -- || -- || --|| 2954 योजन|| 5908 योजन|| 47262x7/20 योजन
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| | श्रोत्र|| -- || -- || -- || -- || 8000 धनुष|| 12 योजन
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| | मन|| --|| --|| --|| --|| --|| सर्वलोकवर्ती
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| <span class="HindiText"><span class="GRef">राजवार्तिक हिंन्दी/फुट नोट</span> - कुल सरसों का प्रमाण आठ सरसों = 1. यव; आठ यव = 1 अंगुल; 24 अंगुल = 1 हाथ; 4 हाथ = 1 धनुष; 2000 धनुष = 1 कोष; 4 कोस = 1 व्यवहार योजन; 500 व्यवहार योजन = 1 बड़ा योजन। अब 100,000 योजन विष्कंभ के 1000 योजन गहरे कुंड का घन प्रमाण = (50,000)<sup>2</sup> * 22/7*1000 = 75*10<sup>13</sup> योजन । 1 घन योजन में सरसों का प्रमाण = (8 * 8 * 24 * 4 * 2000 * 4 * 500)<sup>3</sup>* 75 *10<sup>13</sup> = 19791209299968 X 10\31। कुंडके ऊपर शिखामें सरसों = 1799200844551636 - 36 36 36 33 36 36 36 36 36 36 36 36 36 4\11। प्रथम कुंडमें कुल सरसों = 1997112938451316 - 36 36 36 36 36 36 36 36 36 36 36 36 36 36 3.4\11 (45 अक्षर)। अंतिम कुंड में सरसों का प्रमाण 45 अक्षर X असंख्यात्। </span></li> | |
Revision as of 13:58, 28 September 2022
एकेंद्रिय जीवों के 42 भेद हैं-
पृथ्वी, जल, तेज, वायु, साधारण वनस्पति, और प्रत्येक वनस्पति । प्रत्येक वनस्पति के दो भेद - सप्रतिष्ठित और अप्रतिष्ठित। इस तरह एकेंद्रिय जीवों के सात भेद हुए।
इन सात के सूक्ष्म व बादर की अपेक्षा 14 भेद हुए।
ऐसे 14 भेद में हर एक के पर्याप्त, निर्वृत्यपर्याप्त व लब्ध्यपर्याप्त, इस तरह 42 भेद हुए।
(जै.सि.प्र. 54-57) - देखें बृहत् जैन शब्दार्णव/ द्वि. खंड।
Page भाव
नोट औदयिक भावों के उत्तर भेद
औदयिक भाव के इक्कीस भेद हैं। चार गति, चार कषाय, तीन लिंग, एक -एक मिथ्यादर्शन, अज्ञान, असंयम, असिध्द भाव और छह लेश्याएँ।