अपराजित
From जैनकोष
- एक यक्ष-दे.यक्ष;
- एक ग्रह-दे.ग्रह;
- कल्पातीत देवोंका एक भेद-दे.स्वर्ग/२/१;
- अपराजित स्वर्ग-देखे स्वर्ग /५/४;
- जम्बूद्वीपकी वेदिकाका उत्तर द्वार-दे.लोक/३/१;
- अपर विदेहस्थ व प्रवान क्षेत्रकी मुख्य नगरी-दे.लोक/५/२;
- रुचकवर पर्वतका कूट-दे.लोक/५/१३;
- विजयार्धकी दक्षिण श्रेणीका एक नगर-दे.विद्याधर;
- विजयार्धकी उत्तर श्रेणीका एक नगर-दे.विद्याधर।
- (महापुराण सर्ग संख्या ५२/श्लो.७) धातकी खण्डमें सुसीमा देशका राजा था (२-३) प्रव्रज्या ग्रहणकर तीर्थंकर प्रकृतिका बन्ध किया और ऊर्ध्व ग्रैवेयकमें अहमिन्द्र हो गये (१२-१४) यह पद्मप्रभ भगवान्का पूर्वका तीसरा भव है।
- (महापुराण सर्ग संख्या ६२/श्लो.) वत्सकावती देशकी प्रभाकरी नगरीके राजा स्तमितसागरका पुत्र था (४१२-४१३) राज्य पाकर नृत्य देखनेमें आसक्त हो गया और नारदका सत्कार करना भूल गया (४३०-४३१) क्रुद्ध नारदने शत्रु दमितारिको युद्धार्थ प्रस्तुत किया (४४३) इन्होंने नर्तकीका वेश बना उसकी लड़कीका हरण कर लिया और युद्धमें उसको हरा दिया (४६१-४८४) तथा बलभद्र पद पाया (५१०)। अन्तमें दीक्षा ले समाधि-मरण कर अच्युतेन्द्र पद पाया (२६-२७) यह शान्तिनाथ भगवान्का पूर्वका ७वाँ भव है।
- (महापुराण सर्ग संख्या ६२/श्लो.) सुगन्धिला देशके सिंहपुर नगरके राजा अर्हदास का पुत्र था (३-१०) पहिले अणुव्रत धारण किये (१६) फिर एक माहका उत्कृष्ट संन्यास धारण कर अच्युतेन्द्र हुआ (४५-५०) यह भगवान् नेमिनाथका पूर्वका पाँचवाँ भव है।
- (हरिवंश पुराण सर्ग ३६/श्लो.) जरासन्धका भाई था, कंसकी मृत्युके पश्चात् कृष्णके साथ युद्धमें मारा गया (७२-७३)।
- श्रुतावतारके अनुसार आप भगवान् वीरके पश्चात् तृतीय श्रुतकेवली हुए थे। समय-वी.नि. ९२-११४, ई.पू.४३४-४१२। देखे इतिहास । ४/४।
- (सिद्धिविनिश्चय / प्रस्तावना ३४/पं.महेन्द्रकुमार) आप सुमति आचार्यके शिष्य थे। समय-वि. ४९४ (ई.४३७)
- (भगवती आराधना / प्रस्तावना /पं. नाथूराम प्रेमी) आप चन्द्रनन्दिके प्रशिष्य और बलदेवसूरिके शिष्य थे। आपका अपर नाम विजयाचार्य था। आपने भगवती आराधनापर विस्तृत संस्कृत टीका लिखी है। समय-शक ६५८ (वि. ७९३) में टीका पूरी की।