प्रभु थारी आज महिमा जानी
From जैनकोष
प्रभु थारी आज महिमा जानी ।।टेक. ।।
अबलौं मोह महामद पिय मैं, तुमरी सुधि विसरानी ।
भाग जगे तुम शांति छवी लखि, जड़ता नींद बिलानी।।१ ।।प्रभु. ।।
जगविजयी दुखदाय रागरुष, तुम तिनकी थिति भानी ।
शांतिसुधा सागर गुन आगर, परमविराग विज्ञानी।।२ ।।प्रभु. ।।
समवसरन अतिशय कमलाजुत, पै निर्ग्रन्थ निदानी ।
क्रोधबिना दुठ मोहविदारक, त्रिभुवनपूज्य अमानी।।३ ।।प्रभु. ।।
एकस्वरूप सकलज्ञेयाकृत, जग-उदास जग-ज्ञानी ।
शत्रुमित्र सबमें तुम सम हो, जो दुखसुख फल यानी।।४ ।।प्रभु. ।।
परम ब्रह्मचारी है प्यारी, तुम हेरी शिवरानी ।
ह्वै कृतकृत्य तदपि तुम शिवमग, उपदेशक अगवानी।।५ ।।प्रभु. ।।
भई कृपा तुमरी तुममेंतैं, भक्ति सु मुक्ति निशानी ।
ह्वै दयाल अब देहु `दौल' को, जो तुमने कृति ठानी।।६ ।।प्रभु. ।।