ग्रन्थ:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 119 - तात्पर्य-वृत्ति
From जैनकोष
ण हि इंदियाणि जीवा काया पुण छप्पयार पण्णत्ता । (119)
जं हवदि तेसु णाणं जीवो त्ति य तं परूवंति ॥129॥
अर्थ:
इन्द्रियाँ जीव नहीं हैं, कहे गए छह प्रकार के काय भी जीव नहीं हैं । उनमें जो ज्ञान है वह जीव है, ऐसा (सर्वज्ञ भगवान) प्ररूपित करते हैं ।
तात्पर्य-वृत्ति हिंदी :
इंद्रियाँ जीव नहीं हैं। मात्र इन्द्रियाँ ही जीव नहीं हैं (इतना ही नहीं); अपितु परमागम में कहे गए जो पृथ्वीकाय आदि छह प्रकार हैं, वे भी जीव नहीं हैं। तो फिर जीव कौन है? उनमें रहनेवाला जो ज्ञान है, वह जीव है ऐसा (सर्वज्ञ भगवान) प्ररूपित करते हैं ।
वह इसप्रकार -- अनुपचरित असद्भूत व्यवहार से स्पर्शनादि द्रव्येन्द्रियाँ और उसीप्रकार अशुद्ध निश्चय-नय से लब्धि-उपयोग रूप भावेन्द्रियाँ यद्यपि जीव कही जाती हैं, उसीप्रकार व्यवहार से पृथ्वी आदि छह काय जीव कहे जाते हैं; तथापि शुद्ध निश्चय से जो अतीन्द्रिय, अमूर्त केवल ज्ञान में अन्त र्गर्भित अनन्त सुखादि गुणों का समूह है, वह जीव है, ऐसा सूत्र तात्पर्य है ॥१२९॥