प्रीतिंकर
From जैनकोष
- म.पु./सर्ग/श्लोक पुण्डरीकिणी नगरी के राजा प्रिय सेन का पुत्र था (९/१०८) । स्वयंप्रभु मुनिराज से दीक्षा ले अवधिज्ञान व आकाशगमन विद्या प्राप्त की (९/११०) । ऋषभ भगवान् को जबकि वे भोग भूमिज पर्याय में थे (देखें - ऋषभनाथ ) सम्बोधन के लिए भोगभूमि में जाकर अपना परिचय दिया (९/१०५) तथा सम्यग्दर्शन ग्रहण कराया (९/१४८) । अन्त में केवलज्ञान प्राप्त किया (१०/१) ।
- म. पु.।76। श्लोक अपनी पूर्व की शृगाली की पर्याय में रात्रि भोजन त्याग के फल से वर्तमान भव में कुबेरदत्त सेठ के पुत्र हुए (२३८-२८१) । बाल्यकाल में ही मुनिराज के पास शिक्षा प्राप्त की (२४४-२४८) । विदेश में भाइयों द्वारा धोखा दिया जाने पर गुरुभक्त देवों ने रक्षा की (२४९-३८४) । अन्त में दीक्षा ले मोक्ष प्राप्त किया (३८७-३८८) ।
- प.पु./७७/श्लोक अरिंदम राजा का पुत्र था (६५) । पिता के कीट बन जाने पर पिता की आज्ञानुसार उसको (कीटको) मारने गया । तब कीट विष्टा में घुस गया (६७) । तब मुनियों से प्रबोध को प्राप्त हो दीक्षा धारण की (७०) ।
- नव ग्रैवेयक का नवाँ पटल व इन्द्रक - देखें - स्वर्ग / ५ / ३ ।