चन्द्रानन जिन चन्द्रनाथ के
From जैनकोष
चन्द्रानन जिन चन्द्रनाथ के, चरन चतुर-चित ध्यावतु हैं ।
कर्म-चक्र-चकचूर चिदातम, चिनमूरत पद पावतु हैं ।।टेक ।।
हाहा-हूहू-नारद-तुंबर, जासु अमल जस गावतु हैं ।
पद्मा सची शिवा श्यामादिक, करधर बीन बजावतु हैं ।।१ ।।
बिन इच्छा उपदेश माहिं हित, अहित जगत दरसावतु हैं ।
जा पदतट सुर नर मुनि घट चिर, विकट विमोह नशावतु हैं ।।२ ।।
जाकी चन्द्र बरन तनदुतिसों, कोटिक सूर छिपावतु हैं ।
आतमजोत उदोतमाहिं सब, ज्ञेय अनंत दिपावतु हैं ।।३ ।।
नित्य-उदय अकलंक अछीन सु, मुनि-उडु-चित्त रमावतु हैं ।
जाकी ज्ञानचन्द्रिका लोका-लोक माहिं न समावतु हैं ।।४ ।।
साम्यसिंधु-वर्द्धन जगनंदन, को शिर हरिगन नावतु हैं ।
संशय विभ्रम मोह `दौल' के, हर जो जगभरमावतु हैं ।।५ ।।