कालानुयोग - सम्यक्त्व मार्गणा
From जैनकोष
12. सम्यक्त्व मार्गणा—
मार्गणा |
गुणस्थान |
नाना जीवापेक्षया |
एक जीवापेक्षया |
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प्रमाण |
जघन्य |
विशेष |
उत्कृष्ट |
विशेष |
प्रमाण |
जघन्य |
विशेष |
उत्कृष्ट |
विशेष |
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नं.1 |
नं.2 |
नं.1 |
नं.3 |
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सू. |
सू. |
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सू. |
सू. |
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सम्यक्त्व सामान्य |
... |
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44-45 |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
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189-190 |
अन्तर्मु0 |
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66 सा0+4को0पूर्व |
(देखें काल - 5) |
क्षायिक सम्य0 |
... |
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सर्वदा |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
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192-193 |
अन्तर्मु0 |
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8 वर्ष कम 2को0पूर्व+33 सागर |
कृतकृत्य वेदक सम्यग्दृष्टि देव या नारकी मनुष्यों में उपजा/सर्व लघु काल से क्षायिक सम्यक्त्व सहित संयत होकर रहा/मरकर सर्वार्थ सिद्धि में गया/वहा̐ से आ पुन: को0पूर्व आयु वाला मनुष्य हो मुक्त हुआ। |
वेदक सम्य0 |
... |
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सर्वदा |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
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195-196 |
अन्तर्मु0 |
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66 सा0+4पू0को0 |
(देखें काल - 5) |
उपशम सम्य0 |
... |
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46-48 |
अन्तर्मु0 |
सासादन |
पल्य/असं0 |
प्रवाह क्रम |
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198-199 |
अन्तर्मु0 |
स्वकाल पूर्ण होने पर अवश्य सासादन |
अन्तर्मुहूर्त |
जघन्यवत् |
सम्यग्मिथ्यात्व |
... |
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46-48 |
अन्तर्मु0 |
गुणस्थान परि |
पल्य/असं0 |
प्रवाह क्रम |
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198-199 |
अन्तर्मु0 |
गुणस्थान परिवर्तन |
अन्तर्मुहूर्त |
जघन्यवत् |
सासादन |
... |
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49-51 |
1 समय |
मूलोघवत् |
पल्य/असं0 |
मूलोघवत् |
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201-202 |
1 समय |
उपशम सम्यक्त्व में 1 समय शेष रहने पर सासादन |
6 आवली |
उपशम में 6 आवली शेष रहने पर सासादन |
मिथ्यात्व (अभव्य) |
... |
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44-45 |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
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203 |
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अनादि अनन्त |
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(भव्य) |
... |
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44-45 |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
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203 |
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अनादि सान्त व सादि सान्त |
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(सादि सान्त) |
... |
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44-45 |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
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203 |
अन्तर्मु0 |
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कुछ कम अर्ध पु0परि0 |
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सम्यग्दृष्टि सामान्य |
4-14 |
317 |
— |
— |
मूलोघवत् |
— |
— |
137 |
— |
— |
मूलोघवत् |
— |
— |
क्षायिक सम्य0 |
4 |
317 |
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मूलोघवत् |
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137 |
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मूलोघवत् |
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5 |
317 |
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मूलोघवत् |
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137 |
— |
मूलोघवत् |
— |
4 अन्तर्मु0+8 वर्ष कम 1 कोड़ पूर्व |
सम्य0देव या नारकी मनुष्यों में उपजा/3 अन्तर्मु0गर्भ काल, 8 वर्ष पश्चात् संयमासंयम 1 अन्तर्मु0विश्राम, 1 अन्तर्मु0क्षपणा काल 1 पूर्व कोड़ की उत्कृष्ट आयु तक रहकर मरा |
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6-14 |
317 |
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मूलोघवत् |
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137 |
— |
— |
मूलोघवत् |
— |
— |
वेदक सम्य0 |
4-7 |
318 |
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मूलोघवत् |
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318 |
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उपशम सम्य0 |
4-5 |
319-320 |
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अन्तर्मु0 |
गुणस्थान परि0(एक जीववत्) |
पल्य/असं0 |
प्रवाह क्रम (जघन्यवत्) |
321-322 |
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अन्तर्मु0 |
मिथ्या. से उप0सम्य0असंयत अथवा संयतासंयत पुन: सासादन पूर्वक मिथ्या. |
अन्तर्मुहूर्त |
जघन्यवत् पर सम्यग्मिथ्यात्व, मिथ्या0या वेदक सम्यक्त्व को प्राप्त कराना सासादन नहीं |
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6-11 |
323-324 |
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1 समय |
1 जीववत् |
अन्तर्मु0 |
प्रवाहक्रम (जघन्यवत्) |
325-326 |
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1 समय |
यथायोग्य आरोहण व अवरोह क्रम में मरणस्थान वाला भंग (देखें काल - 5) |
अन्तर्मुहूर्त |
जघन्यवत् |
सासादन |
2 |
327 |
— |
— |
मूलोघवत् |
— |
— |
327 |
— |
— |
मूलोघवत् |
— |
— |
सम्यग्मिथ्यात्व |
3 |
328 |
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मूलोघवत् |
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328 |
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मूलोघवत् |
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मिथ्यादृष्टि |
1 |
329 |
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मूलोघवत् |
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329 |
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मूलोघवत् |
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