योगसार - चूलिका-अधिकार गाथा 471
From जैनकोष
मूढ़ जीवों की मान्यता -
गन्धर्वनगराकारं विनश्वरमवास्तवम् ।
स्थावरं वास्तवं भोगं बुध्यन्ते मुग्धबुद्धय: ।।४७१।।
अन्वय :- मुग्धबुद्धय: गन्धर्वनगराकारं (इव) विनश्वरं (च) अवास्तवं भोगं स्थावरं वास्तवं (च) बुध्यन्ते ।
सरलार्थ :- मूढ़बुद्धि मनुष्य अर्थात् जिन्हें वस्तुस्वरूप का ठीक परिज्ञान नहीं है, वे गन्धर्वनगर के आकार के समान विनाशीक और अवास्तविक भोग समूह को स्थिर और वास्तविक समझते हैं ।