विद्युद्वेग
From जैनकोष
कृष्ण की पटरानी गांधारी के पूर्वभव का पिता एक विद्याधर । यह जंबूद्वीप के विजयार्ध पर्वत की दक्षिणश्रेणी पर गगनवल्लभ नगर का राजा था । विद्युद्वेगा इसकी रानी और सुरूपा इसकी पुत्री थी । हरिवंशपुराण में इसकी रानी का नाम विद्युन्मती तथा पुत्री का नाम विनयश्री बताया है । विद्याधर नमि की वंश परंपरा में यह विद्युदाभ विद्याधर का पुत्र और विद्याधर वैद्युत का पिता था । महापुराण 71.416-428, पद्मपुराण 5.20, हरिवंशपुराण 13. 24, 60.89-93
(2) बलि के सहस्रग्रीव आदि अनेक राजाओं के पश्चात् हुआ एक विद्याधर । यह वसुदेव का ससुर तथा दधिमुख और चंडवेग विद्याधरों का पिता था । मदनवेगा इसकी पुत्री थी । इसे किसी निमित्तज्ञानी मुनि ने गंगा में विद्या सिद्ध करने वाले चंडवेग के कंधे पर आकाश से गिरने वाले पुरुष को इसकी पुत्री का होने वाला पति बताया था । नभस्तिलक नगर का राजा त्रिशिखर अपने पुत्र सूर्यक को इसकी पुत्री मदनवेगा नहीं दिला सका । इस कारण वह विद्युद्वेग से रुष्ट हुआ और उसने उसे बंदी बना लिया । दैवयोग से वसुदेव चंडवेग के कंधे पर गिरे । चंडवेग ने इसे मुक्त कराने के लिए वसुदेव को अनेक विद्यास्त्र दिये । वसुदेव ने विद्यास्त्र लेकर माहेंद्रास्त्र से त्रिखर का शिर काट डाला और इसे बंधनों से मुक्त करा दिया । इसने भी मदनवेगा वसुदेव को विवाह दी थी । हरिवंशपुराण 25.36-70, 48.61 देखें चंडवेग
(3) पुष्कलावती देश की पुंडरीकिणी नगरी का एक चोर । चोरी में पकड़े जाने पर दंड देने वालों ने इसे तीन प्रकार के दंड निश्चित किये थे । इनमें प्रथम दंड था मिट्टी की तीन थाली शकृतभक्षण । दूसरा दंड था― मल्लों के तीस मुक्कों की मार और तीसरा दंड था― अपने सर्व धन का समर्पण । इसने जीवित रहने की इच्छा से तीनों दंड सहे थे । अंत में यह मरकर नरक गया । महापुराण 46.289-294