वर्णीजी-प्रवचन:मोक्षशास्त्र - सूत्र 7-25
From जैनकोष
बंधबधच्छेदातिभारारोपणांनपाननिरोधा: ।।7-25।।
(194) अहिंसाणुव्रत के पांच अतिचार―अहिंसाणुव्रत के अतिचार इस प्रकार हैं । (1) किसी पशु को जो कि किसी अपने दृष्ट देश को गमन करने का उत्सुक है उसके प्रतिबंध का हेतुभूत खुटे आदिक में रस्सी आदिक से विशिष्ट दृढ़ बांध देना बंधन है । यह बंधन सामान्यतया गृहस्थ को करना पड़ता है, क्योंकि गृहस्थ के घर गाय, बैल, भैंस आदिक पशु भी होते हैं और वे पशु ही तो हैं । वे उद्दंडता न करें, यत्र तत्र न भागे, इस प्रयोजन से बाँध दिए जाते हैं । एक दूसरे को न मारें इसलिए भी बांध दिए जाते हैं, उनको इतना मजबूत बाँधना कि कोई उपद्रव आने पर वे वहाँ से जा न सके और अपने प्राण गमा दें, ऐसा बंधन बड़ा दोष करने वाला है । तो पशु आदिक को बांधना यह प्रथम अतिचार है । (2) डंडा, बेंत, रस्सी आदिक से उनको पीटना, यह उनका वध कहलाता है । वध के मायने मात्र पीटना है । जैसे कि अक्सर कभी कोई डंडा मारना पड़ता है वह अतिचार है, उनके प्राण खतम कर देना यह तो अनाचार है, क्रूरता है । उसका तो प्रकरण ही नहीं है, अवकाश ही नहीं है । केवल थोड़ा ताड़ देना यह वध कहलाता है । यह हिंसा व्रत का अतिचार है । (3) पशु आदिक के कान, नाक आदिक अवयवों को छेद देना छेद कहलाता है । यह अहिंसाणुव्रत का तृतीय अतिचार है । (4) पशुओं पर उनके सामर्थ्य से बाहर भार लादना । जितना भार लादना चाहिए या सरकारी आज्ञा है या हृदय बतलाता है उससे भी कम करना उचित है । मगर उससे भी अधिक भार लादना यह अहिंसाणुव्रत का अतिचार है, क्योंकि विशेष लोभ के कारण बैल आदिक पर अधिक बोझ लादा लाता है--यह दोष है । ( 5) भूख प्यास की बाधावों को उत्पन्न करना, उनके अन्न पान का निरोध करना यह अणुव्रत का 5वां अतिचार है । क्रोधवश प्रमादवश उनको समय पर अन्न पान न देना यह अहिंसाणुव्रत का अतिचार है । ये 5 अहिंसाणुव्रत के अतिचार कहे गए हैं । अब सत्याणुव्रत के अतिचार कहते हैं ।