कथा (न्याय): Difference between revisions
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न्यायसार पृ.15 <span class="SanskritText">वादिप्रतिवादिनो: पक्षप्रतिपक्षपरिग्रह: कथा।</span> = <span class="HindiText">वादी प्रतिवादियों के पक्षप्रतिपक्ष का ग्रहण सो कथा है।<br /> | |||
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न्या.वि./मू./2/213/243 <span class="SanskritText">प्रत्यनीकव्यवच्छेदप्रकारेणैकसिद्धये वचनं साधनादीनां वादं सोऽयं जिगीषितो:।213।</span>= <span class="HindiText">विरोधी धर्मों में से किसी एक को सिद्ध करने के लिए, एक दूसरे को जीतने की इच्छा रखनेवाले वादी और प्रतिवादी परस्पर में जो हेतु व दूषण आदि देते हैं, वह वाद कहलाता है।</span> न्या.दी./3/34/79 <span class="SanskritText">वादिप्रतिवादिनो: स्वमतस्थापनार्थं जयपराजयपर्यंतं परस्परं प्रवर्तमानो वाग्व्यापारो विजिगीषुकथा। गुरुशिष्याणां विशिष्टविदुषां वा रागद्वेषरहितानां तत्त्वनिर्णयपर्यन्तं परस्परं प्रवर्तमानो वाग्व्यापारो वीतरागकथा। तत्र विजिगीषुकथा वाद इति चोच्यते।...विजिगीषुवाग्व्यवहार एव वादत्वप्रसिद्धे:। यथा स्वामिसमन्तभद्राचार्यै: सर्वे सर्वथैकान्तवादिनो वादे जिता इति</span>।= <span class="HindiText">वादी और प्रतिवादी में अपने पक्ष को स्थापित करने के लिए जीत-हार होने तक जो परस्पर में वचन प्रवृत्ति या चर्चा होती है वह <strong>विजिगीषु-कथा</strong> कहलाती है और गुरु तथा शिष्य में अथवा रागद्वेष रहित विशेष विद्वानों में तत्त्व के निर्णय होने तक जो चर्चा चलती है वह <strong>वीतरागकथा</strong> है। इनमें विजिगीषु कथा को <strong>वाद</strong> कहते हैं। हार जीत की चर्चा को अवश्य वाद कहा जाता है। जैसे <strong>-</strong> स्वामी समन्तभद्राचार्य ने सभी एकान्तवादियों को वाद में जीत लिया। </span></li> | |||
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<li><span class="HindiText"><strong> | <li><span class="HindiText"><strong>विजिगीषु कथा सम्बन्धी विशेष–दे</strong>0<strong> वाद।</strong></span></li> | ||
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Revision as of 21:39, 5 July 2020
न्या. दी./पृ.41 की टिप्पणी - नानाप्रवक्तृत्वे सति तद्विचारवस्तुविषया वाक्यसंपद्लब्धिकथा। = अनेक प्रवक्ताओं के विचार का जो विषय या पदार्थ है, उनके वाक्य सन्दर्भ का नाम कथा है।
न्यायसार पृ.15 वादिप्रतिवादिनो: पक्षप्रतिपक्षपरिग्रह: कथा। = वादी प्रतिवादियों के पक्षप्रतिपक्ष का ग्रहण सो कथा है।
- कथा के भेद
न्या.सू./भाष्य/1-1/41/41/18 तिस्र: कथा भवन्ति वादो जल्पो वितण्डा चेति।=कथा तीन प्रकार की होती है-वाद, जल्प व वितण्डा।
न्यायसार पृ. 15 सा द्विविधा-वीतरागकथा विजिगीषुकथा चेति।= वह दो प्रकार है - वीतरागकथा और विजिगीषुकथा।
- वीतराग व विजिगीषु कथा के लक्षण
न्या.वि./मू./2/213/243 प्रत्यनीकव्यवच्छेदप्रकारेणैकसिद्धये वचनं साधनादीनां वादं सोऽयं जिगीषितो:।213।= विरोधी धर्मों में से किसी एक को सिद्ध करने के लिए, एक दूसरे को जीतने की इच्छा रखनेवाले वादी और प्रतिवादी परस्पर में जो हेतु व दूषण आदि देते हैं, वह वाद कहलाता है। न्या.दी./3/34/79 वादिप्रतिवादिनो: स्वमतस्थापनार्थं जयपराजयपर्यंतं परस्परं प्रवर्तमानो वाग्व्यापारो विजिगीषुकथा। गुरुशिष्याणां विशिष्टविदुषां वा रागद्वेषरहितानां तत्त्वनिर्णयपर्यन्तं परस्परं प्रवर्तमानो वाग्व्यापारो वीतरागकथा। तत्र विजिगीषुकथा वाद इति चोच्यते।...विजिगीषुवाग्व्यवहार एव वादत्वप्रसिद्धे:। यथा स्वामिसमन्तभद्राचार्यै: सर्वे सर्वथैकान्तवादिनो वादे जिता इति।= वादी और प्रतिवादी में अपने पक्ष को स्थापित करने के लिए जीत-हार होने तक जो परस्पर में वचन प्रवृत्ति या चर्चा होती है वह विजिगीषु-कथा कहलाती है और गुरु तथा शिष्य में अथवा रागद्वेष रहित विशेष विद्वानों में तत्त्व के निर्णय होने तक जो चर्चा चलती है वह वीतरागकथा है। इनमें विजिगीषु कथा को वाद कहते हैं। हार जीत की चर्चा को अवश्य वाद कहा जाता है। जैसे - स्वामी समन्तभद्राचार्य ने सभी एकान्तवादियों को वाद में जीत लिया।
- विजिगीषु कथा सम्बन्धी विशेष–दे0 वाद।