छांडि दे या बुधि भोरी: Difference between revisions
From जैनकोष
(New page: छांडि दे या बुधि भोरी, वृथा तनसे रति जोरी ।।टेक. ।।<br> यह पर है न रहे थिर पोष...) |
(No difference)
|
Revision as of 06:33, 10 February 2008
छांडि दे या बुधि भोरी, वृथा तनसे रति जोरी ।।टेक. ।।
यह पर है न रहे थिर पोषत, सकल कुमल की झोरी ।
यासौं ममता कर अनादितैं, बंधो कर्मकी डोरी ।
सहै दु:ख जलधि हिलोरी ।।१ ।।छांडि. ।।
यह जड़ है तू चेतन यौं ही, अपनावत बरजोरी ।
सम्यक्दर्शन ज्ञान चरण निधि, ये हैं संपति तोरी ।
सदा विलसौ शिवगोरी ।।२ ।।छांडि. ।।
सुखिया भये सदीव जीव जिन, यासौं ममता तोरी ।
`दौल' सीख यह लीजे पीजे, ज्ञानपियूष कटोरी ।
मिटै परचाह कठोरी ।।३ ।।छांडि. ।।