तू स्वरूप जाने बिना दुखी: Difference between revisions
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(राग दीपचन्दी धनाश्री)
तू स्वरूप जाने बिना दुखी, तेरी शक्ति न हलकी वे ।।टेक ।।
रागादिक वर्णादिक रचना, सो है सब पुद्गलकी वे ।।१ ।।
अष्ट गुनातम तेरी मूरति, सो केवलमें झलकी वे ।।२ ।।
जगी अनादि कालिमा तेरे, दुस्त्यज मोहन मलकी वे ।।३ ।।
मोह नसैं भासत है मूरत, पँक नसैं ज्यों जलकी वे।।४ ।।
`भागचन्द' सो मिलत ज्ञानसों, स्फूर्ति अखंड स्वबल की वे ।।५ ।।