निजहितकारज करना भाई!: Difference between revisions
From जैनकोष
(New page: निजहित कारज करना भाई! निजहित कारज करना ।।टेक. ।।<br> जनममरन दुख पावत जातैं, ...) |
(No difference)
|
Revision as of 06:40, 10 February 2008
निजहित कारज करना भाई! निजहित कारज करना ।।टेक. ।।
जनममरन दुख पावत जातैं, सो विधिबंध कतरना ।
ज्ञानदरस अर राग फरस रस, निजपर चिह्न भ्रमरना ।
संधिभेद बुधिछैनीतैं कर, निज गहि पर परिहरना।।१ ।।निज. ।।
परिग्रही अपराधी शंकै, त्यागी अभय विचरना ।
त्यौं परचाह बंध दुखदायक, त्यागत सबसुख भरना।।२ ।।निज. ।।
जो भवभ्रमन न चाहे तो अब, सुगुरुसीख उर धरना ।
`दौलत' स्वरस सुधारस चाखो, ज्यौं विनसै भवभरना।।३ ।।निज. ।।