योगसार - चूलिका-अधिकार गाथा 508
From जैनकोष
कर्मल से रहित आत्मा निर्बंध -
युज्यते रजसा नात्मा भूयोsपि विरजीकृत: ।
पृथक्कृतं कुत: स्वर्णं पुन: किट्टेन युज्यते ।।५०९।।
अन्वय : - (यथा) किट्टेन पृथक्कृतं स्वर्णं पुन: (किट्टेन) कुत: युज्यते ? (तथा एव) रजसा विरजीकृत: आत्मा अपि भूय: (रजसा) न युज्यते ।
सरलार्थ :- जिसप्रकार किट्ट कालिमारूप मल से भिन्न किया गया शुद्ध सुवर्ण फिर से किट्ट कालिमा से युक्त होकर अशुद्ध नहीं हो सकता; उसीप्रकार जो ज्ञानावरणादि आठों कर्मरूपी रज से रहित हुआ है, वह शुद्ध आत्मा भी फिर से कर्मो से युक्त नहीं होता अर्थात् बंधता नहीं है ।