योगसार - चूलिका-अधिकार गाथा 509
From जैनकोष
उपादान कारण बिना कार्य नहीं होता -
दण्ड-चक्र-कुलालादि-सामग्रीसम्भवेsपि नो ।
संपद्यते यथा कुम्भो विनोपादानकारणम् ।।५१०।।
मनो-वचो-वपु:कर्म-सामग्रीसम्भवेsपि नो ।
संपद्यते तथा कर्म विनोपादानकारणम् ।।५११।।
अन्वय : - यथा दण्ड-चक्र-कुलालादि-सामग्रीसम्भवे अपि उपादानकारणं विना कुम्भ: नो सम्पद्यते । तथा मन:वच:वपु:कर्म-सामग्रीसम्भवे अपि उपादानकारणं विना कर्म न सम्पद्यते ।
सरलार्थ :- जिसप्रकार दण्ड, चक्र और कुंभकार आदि निमित्तरूप अनेक प्रकार की कारण सामग्री का सद्भाव होनेपर भी मृत्पिण्डरूप उपादान कारण के बिना कुम्भ/घटरूप कार्य की उत्पत्ति नहीं होती । उसीप्रकार मन-वचन-काय की क्रियारूप निमित्तकारण स्वरूप सामग्री का सद्भाव/अस्तित्व होने पर भी मिथ्यात्व, अविरति आदि कलुषतारूप उपादान कारण के बिना कर्म की उत्पत्ति नहीं होती ।