वर्णीजी-प्रवचन:योगिभक्ति - श्लोक 18
From जैनकोष
वरकुट्ठबीयबुद्धि पदणुा सारीय मिण्ण्सोदारे।
उग्गहईहसमत्थे सुत्तत्थविसादे वंदे ।।18।।
कोष्ठऋद्धि एवं बीजऋद्धि के धारक योगियों का वंदन- जिनको कोष्ठबुद्धि की ऋद्धि प्राप्त हुई है, जैसे कोठे में जितना धान भर दिया, ताला लगा दिया तो वे उतने ही धान बने रहेंगे, जब खोलो तब उतने ही निकलेंगे, इसी प्रकार जिसने जितना ज्ञानार्जन किया है जितना ज्ञान प्राप्त हुआ है उससे कम न होगा। कितने ही वर्ष व्यतीत हो लें पर ज्ञान में कमी न आ सकेगी, ऐसी ऋद्धि को कोष्ठस्यधान्योपम ऋद्धि कहते हैं। अभी हम आप कुछ भी अध्ययन करें एक दो वर्ष ही उसका अभ्यास छोड़ देने पर कमी आ जाती है पर कोष्ठऋद्धिसंपन्न योगीश्वरों के जो ज्ञान उत्पन्न होता है उसमें कभी कमी नहीं आ सकती है, जिसके बीजऋद्धि उत्पन्न हुई है, जितना वह ज्ञान अर्जित करता है उससे कई गुना उसका ज्ञान कुन्जीरूप से बढ़ता रहता है। जैसे आजकल कुन्जीरूप पठन होता है तो जो कुछ पढ़ा दिया गया उसके बाद कुन्जी से बहुत से अपठित विषयों का भी अर्थ लगाया जा सकता है, इसी प्रकार जिनको बीजऋद्धि उत्पन्न होती है वे जो कुछ सीखते हैं उससे उनका ज्ञान कम नहीं होता बल्कि कुन्जीरूप बढ़ता रहता है, ऐसे बीजऋद्धिधारी योगीश्वरों की मैं वंदना करता हूं।
पदानुसारी भिन्नश्रोतृत्व सूत्रार्थऋद्धि के धारक योगियों का अभिवंदन- एक पदानुसारी ऋद्धि होती है। उस श्रुत में किसी भी बीच की जगह का कोई पद बोल दिया जाय तो वे आगे और पीछे के पदों को भी जान जाते हैं। जैसे परीक्षाओं में कभी ऐसा प्रश्न आता कि श्लोक का अंतिम चरण या मध्य का या प्रारंभ का चरण बोल दिया और उस पद को पूरा करने के लिए कह दिया तो उसके पूर्व और उत्तर पद की पूर्ति कर दी जाती है, ऐसे ही वे योगीश्वर किसी जगह का कोई पद बोल दिया जाय तो वे उसके आगे पीछे के पदों को सारे प्रकरणों को जान जाते हैं ऐसी पदानुसारी ऋद्धि उन योगीश्वरों में होती है, ऐसे ऋद्धिधारक योगीश्वरों का मैं वंदन करता हूं। एक भिन्न श्रोतृत्व की बुद्धि होती है। चाहे कहीं लाखों आदमियों का जमघट हो, चाहे किसी चक्रवर्ती का कटक ही क्यों न हो, वे सभी लोग शब्द बोल रहे हों, पशु-पक्षी भी बहुत-बहुत बोल रहे हों पर ऐसे कोलाहल में भी एक-एक व्यक्ति के एक-एक जीव के शब्दों को भिन्न-भिन्न समझ लेना, सुन लेना, यह है एक ऋद्धि, ऐसी भिन्न-भिन्न परख कर लेने वाले पैनी बुद्धिसहित योगीश्वरों को मैं वंदन करता हूं। वस्तुभाव के संबंध में जिनका ज्ञान उत्कृष्ट है, जो सूत्रों के अर्थ में निपुण हैं, अनेक सूत्र होते हैं जिनमें विभिन्न अर्थ बसे होते हैं, उनके यथार्थ अर्थ के लगाने में जिनकी निपुणता है ऐसे सूत्रार्थविशारद योगीश्वरों का मैं वंदन करता हूं।