विपतिमें धर धीर, रे नर! विपतिमें धर धीर: Difference between revisions
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विपतिमें धर धीर, रे नर! विपतिमें धर धीर
सम्पदा ज्यों आपदा रे!, विनश जै है वीर।।रे नर. ।।१ ।।
धूप छाया घटत बढ़ै ज्यों, त्योंहि सुख दुख पीर।।रे मन.।।२ ।।
दोष `द्यानत' देय किसको, तोरि करम-जँजीर।।रे मन.।।३ ।।