हरी तेरी मति नर कौनें हरी: Difference between revisions
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Revision as of 05:29, 10 February 2008
हरी तेरी मति नर कौनें हरी । तजि चिन्तामन कांच गहत शठ ।।टेक ।।
विषय-कषाय रुचत तोकों नित, जे दुखकरन अरी ।।१ ।।
सांचे मित्र सुहितकर श्रीगुरु, तिनकी सुधि विसरी ।।२ ।।
परपरनतिमें आपो मानत, जो अति विपति भरी ।।३ ।।
`भागचन्द' जिनराज भजन कहुँ, करत न एक घरी ।।४ ।।