योगसार - निर्जरा-अधिकार गाथा 295
From जैनकोष
परद्रव्य के त्याग का स्वरूप -
परद्रव्यं यथा सद्भिर्ज्ञात्वा दु:ख-िव भी रु िभ : ।
दु:खदं त्यज्यते दूरमात्मतत्त्वरतैस्तथा ।।२९५।।
अन्वय :- यथा दु:ख-विभीरुभि: सद्भि: परद्रव्यं दु:खदं ज्ञात्वा दूरं त्यज्यते तथा आत्मतत्त्वरतै: (परद्रव्यं त्यज्यते) ।
सरलार्थ :- जिसप्रकार दु:ख से भयभीत सत्पुरुष परद्रव्य को दु:खदायक जानकर दूर से ही छोड़ देते हैं; उसीप्रकार निजशुद्धात्मतत्त्व में मग्न/लीन जीव परद्रव्य को दूर से ही छोड़ देते हैं ।