ग्रन्थ:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 72 - समय-व्याख्या
From जैनकोष
पयडिट्ठिदिअणुभागप्पदेसबंधेहिं सव्वदो मुक्को । (72)
उड्ढं गच्छदि सेसा विदिसावज्जं गदिं जंति ॥79॥
अर्थ:
प्रकृति, स्थिति, अनुभाग, प्रदेश बंधों से सर्वत: मुक्त जीव ऊर्ध्वगमन करते हैं; शेष जीव (भवान्तर को जाते समय) विदिशाओं को छाे़डकर गति करते हैं।
समय-व्याख्या:
बद्धजीवस्य षडगतयः कर्मनिमित्ताः । मुक्तस्याप्यूर्ध्वगतिरेका स्वाभाविकीत्यत्रोक्तम् ॥७२॥
- इति जीवद्रव्यास्तिकायव्याख्यानं समाप्तम् ।
समय-व्याख्या हिंदी :
बद्ध जीव को कर्म-निमित्तक षड्विध गमन (अर्थात् कर्म जिसमें निमित्त-भूत हैं ऐसा छह दिशाओं में गमन) होता है; मुक्त जीव को भी स्वाभाविक ऐसा एक ऊर्ध्व-गमन होता है -- ऐसा यहाँ कहा है ॥७२॥
इस प्रकार जीव-द्रव्यास्तिकाय का व्याख्यान समाप्त हुआ ।
अब पुद्गल-द्रव्यास्तिकाय का व्याख्यान है ।