मोक्षपाहुड गाथा 94
From जैनकोष
सम्माइट्ठी सावय धम्मं जिणदेवदेसियं कुणदि ।
विेवरीयं कुव्वंतो मिच्छादिट्ठी मुणेयव्वो ।।९४।।
सम्यग्दृष्टि: श्रावक: धर्मं जिनदेवदेशितं करोति ।
विपरीतं कुर्वन् मिथ्यादृष्टि: ज्ञातव्य: ।।९४।।
जिनदेव देशित धर्म की श्रद्धा करें सद्दृष्टिजन ।
विपरीतता धारण करें बस सभी मिथ्यादृष्टिजन ।।९४।।
अर्थ - जो जिनदेव से उपदेशित धर्म का पालन करता है वह सम्यग्दृष्टि श्रावक है और जो अन्यमत के उपदेशित धर्म का पालन करता है उसे मिथ्यादृष्टि जानना ।
भावार्थ - इसप्रकार कहने से यहाँ कोई तर्क करे कि यह तो अपना मत पुष्ट करने की पक्षपातमात्र वार्ता कही, अब इसका उत्तर देते हैं कि ऐसा नहीं है, जिससे सब जीवों का हित हो वह धर्म है ऐसे अहिंसारूप धर्म का जिनदेव ही ने प्ररूपण किया है, अन्यमत में ऐसे धर्म का निरूपण नहीं है, इसप्रकार जानना चाहिए ।।९४।।