योगसार - चारित्र-अधिकार गाथा 402
From जैनकोष
स्त्रियों के मोहादि की बहुलता तीसरा कारण -
विषाद: प्रमदो मूर्च्छा जुगुप्सा मत्सरो भयम् ।
चित्ते चित्रायते माया ततस्तासां न निर्वृति: ।।४०२।।
अन्वय :- (तासां स्त्रीणां) चित्ते विषाद: प्रमद: मूर्च्छा जुगुप्सा मत्सर: भयं तथा माया चित्रायते, तत: तासां निर्वृति: न (जायते) ।
सरलार्थ :- क्योंकि स्त्रियों के चित्त में प्रमद, विषाद, ममता, ग्लानि, ईर्ष्या, भय तथा माया चित्रित रहती है, इससे स्त्रियों को/स्त्री-पर्याय से मुक्ति नहीं होती ।