योगसार - चूलिका-अधिकार गाथा 529
From जैनकोष
कर्मबंध एवं मुक्ति का कारणरूप भाव -
जीवस्यौदयिको भाव: समस्तो बन्धकारणम् ।
विमुक्तिकारणं भावो जायते पारिणामिक: ।।५३०।।
अन्वय : - जीवस्य औदयिक: भाव: समस्त: बन्धकारणं (भवति, जीवस्य च) पारिणामिक: भाव: विमुक्तिकारणं जायते ।
सरलार्थ :- मोहनीय कर्मो के उदय के निमित्त से उत्पन्न होनेवाले जीव के जो औदयिक भाव हैं वे सब नवीन कर्मबंध के कारण होते हैं और जीव का जो पारिणामिक भाव है, वह मुक्ति का कारण होता है ।