योगसार - निर्जरा-अधिकार गाथा 279
From जैनकोष
प्राप्त सुख-दु:ख में समताभाव से निर्जरा -
अनुबन्ध: सुखे दु:खे न कार्यो निर्जरार्थिभि: ।
आर्तं तदनुबन्धेन जायते भूरिकर्मदम् ।।२७९।।
अन्वय :- निर्जरार्थिभि: सुखे-दु:खे अनुबन्ध: न कार्य: तदनुबन्धेन भूरिकर्मदं आर्तं (ध्यानं) जायते ।
सरलार्थ :- निर्जरातत्त्व के इच्छुक साधकों को सहजरूप से प्राप्त सुख-दु:ख में अनुबन्ध अर्थात् अनुवर्तनरूप प्रवृत्ति नहीं रखना चाहिए; क्योंकि उस आसक्ति से ही आर्तध्यान होता है, जो अनेक कर्मो के बंध का दाता है ।