योगसार - बन्ध-अधिकार गाथा 164
From जैनकोष
चारित्रादि की मलिनता में हेतु मिथ्यात्व -
चारित्रं दर्शनं ज्ञानं मिथ्यात्वेन मलीमसम् ।
कर्पटं कर्देनेव क्रियते निज-संगत: ।।१६४।।
अन्वय :- कर्देन कर्पटं इव चारित्रं दर्शनं ज्ञानं मिथ्यात्वेन निज-संगत: मलीमसं क्रियते ।
सरलार्थ :- जिसप्रकार कपड़ा कीचड़ के साथ स्वयं संपर्क करने से मैला हो जाता है; उसीप्रकार मिथ्यात्व के साथ स्वयं संगति करने से चारित्र, दर्शन/श्रद्धा और ज्ञान मिथ्या हो जाते हैं ।