योगसार - मोक्ष-अधिकार गाथा 352
From जैनकोष
तत्त्व-श्रवण से ध्यान -
क्षाराम्भस्त्यागत: क्षेत्रे मधुरोsमृत-योगत: ।
प्ररोहति यथा बीजं ध्यानं तत्त्वश्रुतेस्तथा ।।३५२।।
अन्वय :- यथा क्षाराम्भस्त्यागत: अमृत-योगत: क्षेत्रे बीजं मधुर: प्ररोहति तथा तत्त्वश्रुते: (योगत:) ध्यानं (प्ररोहति) ।
सरलार्थ :- जिसप्रकार खारे जल के त्याग से और मीठे जल के संयोग से खेत में पडा हुआ बीज मधुर फल को उत्पन्न करता है; उसीप्रकार तत्त्व-श्रवण के संयोग से सम्यग्ध्यान उत्पन्न होता है ।