योगसार - मोक्ष-अधिकार गाथा 354
From जैनकोष
कुतर्क का स्वरूप -
बोधरोध: शमापाय: श्रद्धाभङ्गोsभिमानकृत् ।
कुतर्को मानसो व्याधिर्ध्यानशत्रुरनेकधा ।।३५४।।
अन्वय :- कुतर्क: बोधरोध:, शमापाय:, श्रद्धाभङ्ग: अभिमानकृत् (च) मानस: व्याधि: (तथा) अनेकधा ध्यानशत्रु: (अस्ति) ।
सरलार्थ :- कुतर्क, ज्ञान को रोकनेवाला, शांति का नाशक, श्रद्धा को भंग/नष्ट करनेवाला और अभिमान को बढानेवाला मानसिक रोग है । ऐसा यह कुतर्क अनेक प्रकार से ध्यान का शत्रु है ।