योगसार - संवर-अधिकार गाथा 225
From जैनकोष
विकल्पों की निरर्थकता -
अन्योsन्यस्य विकल्पेन वद्धर््यते हाप्यते यदि ।
न सम्पत्तिर्विपत्तिर्वा तदा कस्यापि हीयते ।।२२५।।
अन्वय :- यदि अन्यस्य विकल्पेन अन्य: वद्धर््यते हाप्यते; वा तदा कस्यापि सम्पत्ति: विपत्ति: वा न हीयते ।
सरलार्थ :- यदि एक जीव के विकल्पानुसार दूसरा जीव हानि-अथवा वृद्धि को प्राप्त होता है, ऐसा मान लिया जाय तो किसी भी जीव की सम्पत्ति अथवा विपत्ति कभी क्षीण नहीं होगी ।