योगसार - संवर-अधिकार गाथा 240
From जैनकोष
प्रतिक्रमण का स्वरूप -
कृतानां कर्मणां पूर्वं सर्वेषां पाकमीयुषाम् ।
आत्मीयत्व-परित्याग: प्रतिक्रमणमीर्यते ।।२४०।।
अन्वय :- पूर्वं कृतानां पाकं ईयुषां (च) सर्वेषां कर्मणां आत्मीयत्व-परित्याग: प्रतिक्रमणं ईर्यते ।
सरलार्थ :- पूर्व अर्थात् भूतकाल में स्वयं किये हुए (पुण्य-पापरूप भावकर्मो से प्राप्त) द्रव्यकर्मो के उदय से प्राप्त फल पुण्य-पापरूप भाव - इन सब द्रव्य-भावकर्मो के सम्बन्ध में अपनेपन के सर्वथा त्याग को प्रतिक्रमण कहते हैं ।