• जैनकोष
    जैनकोष
  • Menu
  • Main page
    • Home
    • Dictionary
    • Literature
    • Kaavya Kosh
    • Study Material
    • Audio
    • Video
    • Online Classes
    • Games
  • Share
    • Home
    • Dictionary
    • Literature
    • Kaavya Kosh
    • Study Material
    • Audio
    • Video
    • Online Classes
    • Games
  • Login

जैन शब्दों का अर्थ जानने के लिए किसी भी शब्द को नीचे दिए गए स्थान पर हिंदी में लिखें एवं सर्च करें

वध

From जैनकोष

 Share 



सिद्धांतकोष से

सर्वार्थसिद्धि/6/11/329/2 = आयुरिंद्रियबलप्राणवियोगकारणं वधः ।
सर्वार्थसिद्धि/7/25/366/2 दंडकशावेत्रादिभिरभिघातः प्राणिनां वधः, न प्राणव्यपरोपणम्; ततः प्रागेवास्य विनिवृत्तत्वात् । =

  1. आयु, इंद्रिय और श्वासोच्छ्वास का जुदा कर देना वध है । ( राजवार्तिक/6/11/5/519/28 ); ( परमात्मप्रकाश टीका/2/127 ) ।
  2. डंडा, चाबुक और बेंत आदि से प्राणियों को मारना वध है । यहाँ वध का अर्थ प्राणों का वियोग करना नहीं लिया गया है, क्योंकि अतिचार के पहले ही हिंसा का त्याग कर दिया जाता है । ( राजवार्तिक/7/25/2553/18 ) ।
    परमात्मप्रकाश टीका/2/127/243/9 निश्चयेन मिथ्यात्वविषयकषायपरिणामरूपवधं स्वकीय... । = निश्चयकर मिथ्यात्व विषय कषाय परिणामरूप निजघात... ।


पूर्व पृष्ठ

अगला पृष्ठ


पुराणकोष से

(1) असातावेदनीय कर्म के दुःख शोक आदि आस्रवों में एक आस्रव । हरिवंशपुराण 58.93

(2) अहिंसाणुव्रत का दूसरा अतीचार-दंड आदि से मारना-पीटना । हरिवंशपुराण 58.164-165


पूर्व पृष्ठ

अगला पृष्ठ

Retrieved from "http://www.jainkosh.org/w/index.php?title=वध&oldid=77253"
Categories:
  • व
  • पुराण-कोष
JainKosh

जैनकोष याने जैन आगम का डिजिटल ख़जाना ।

यहाँ जैन धर्म के आगम, नोट्स, शब्दकोष, ऑडियो, विडियो, पाठ, स्तोत्र, भक्तियाँ आदि सब कुछ डिजिटली उपलब्ध हैं |

Quick Links

  • Home
  • Dictionary
  • Literature
  • Kaavya Kosh
  • Study Material
  • Audio
  • Video
  • Online Classes
  • Games

Other Links

  • This page was last edited on 14 November 2020, at 16:57.
  • Privacy policy
  • About जैनकोष
  • Disclaimers
© Copyright Jainkosh. All Rights Reserved
Powered by MediaWiki