वर्णीजी-प्रवचन:मोक्षशास्त्र - सूत्र 4-33
From जैनकोष
अपरा पल्योपममधिकम् ।। 4-33 ।।
सौधर्म और ऐशान स्वर्ग के देवों की जघन्य स्थिति―सौधर्म और ऐशान स्वर्ग के देवों की जघन्य स्थिति कुछ अधिक एक पल्य प्रमाण है, यह संख्या में नहीं आता है, किंतु एक उदाहरण द्वारा वह समय समझाया जाता है । मान लीजिये कि कोई दो हजार कोश का गहरा लंबा, चौड़ा गड्ढा है, उस गड्ढे में बहुत कोमल बाल के इतने छोटे-छोटे टुकड़े हों कि जिनका दूसरा टुकड़ा न हो सके उन बाल के टुकड़ों को उस गड्ढे में ठसाठस भर दिया जाये और ऊपर से खूब हाथी फिराकर ठसाठस कर दिया जाए फिर उस गड्ढे से 100-100 वर्ष में रोम का एक-एक टुकड़ा निकाला जाये तो जितने वर्षों में वे सब टुकड़े निकल पावे उतने समय को कहते हैं व्यवहार पल्य और व्यवहार पल्य का असंख्यात गुणा होता है उद्धार पल्य और उद्धार पल्य से असंख्यात गुणा समय होता है अद्धा पल्य । यह पल्य की स्थिति बतायी जा रही है । तो इस प्रकार कुछ अधिक एक पल्य सौधर्म और ऐशान के देवों की जघन्य स्थिति जानना । अब इससे ऊपर के स्वर्गादिक की जघन्य स्थिति बताने के लिए सूत्र कहते हैं ।