GP:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 100 - समय-व्याख्या - हिंदी
From जैनकोष
काल के 'नित्य' और 'क्षणिक' ऐसे दो विभागों का यह कथन है ।
'यह काल है, यह काल है' ऐसा करके जिस द्रव्य विशेष का सदैव व्यपदेश (निर्देश, कथन) किया जाता है, वह (द्रव्यविशेष अर्थात निश्चय-काल-रूप खास द्रव्य) सचमुच अपने सद्भाव को प्रगट करता हुआ नित्य है, और जो उत्पन्न होते ही नष्ट होता है, वह (व्यवहार काल) सचमुच उसी द्रव्य विशेष की 'समय' नामक पर्याय है । वह क्षण-भंगुर होने पर भी अपनी संतति को (प्रवाह को) दर्शाता है इसलिये उसे नय के बल से 'दीर्घ काल तक टिकने वाला' कहने में दोष नहीं है, इसलिये आवलिका, पल्योपम, सागरोपम इत्यादि व्यवहार का निषेध नहीं किया जाता ।
इस प्रकार यहाँ ऐसा कहा है कि - निश्चय-काल द्रव्य-रूप होने से नित्य है, व्यवहार-काल पर्याय-रूप होने से क्षणिक है ॥१००॥