GP:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 111 - समय-व्याख्या - हिंदी
From जैनकोष
यह, एकेन्द्रियों को चैतन्य का अस्तित्त्व होने सम्बन्धी दृष्टांत का कथन है ।
अंडे में रहे हुए, गर्भ में रहे हुए और मूर्छा पाए हुए (प्राणियों) के जीवत्व का, उन्हें बुद्धिपूर्वक व्यापार नहीं देखा जाता तथापि, जिस प्रकार निश्चय किया जाता है, उसी प्रकार एकेन्द्रियों के जीवत्व का भी निश्चय किया जाता है, क्यों कि दोनों में बुद्धिपूर्वक व्यापार का १अदर्शन समान है ॥१११॥
१अदर्शन= दृष्टिगोचर नहीं होना ।