GP:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 11 - समय-व्याख्या - हिंदी
From जैनकोष
यहाँ दोनों नयों द्वारा द्रव्य का लक्षण विभक्त किया है (अर्थात दो नयों की अपेक्षा से द्रव्य के लक्षण के विभाग किये गए हैं) ।
सहवर्ती गुणों और क्रमवर्ती पर्यायों के सद्भाव-रूप, त्रिकाल-अवस्थायी (त्रिकाल-स्थित रहनेवाला), अनादि-अनन्त द्रव्य के विनाश और उत्पाद उचित नहीं है । परन्तु उसी की पर्यायों के, सहवर्ती कतिपय (पर्यायों) का ध्रौव्य होने पर भी अन्य क्रमवर्ती (पर्यायों) के, विनाश और उत्पाद होना घटित होते हैं । इसलिए द्रव्य, द्रव्यार्थिक आदेश से (कथन से) उत्पाद रहित, विनाश रहित, सत्-स्वभाव-वाला ही जानना चाहिए और वही (द्रव्य) पर्यायार्थिक आदेश से उत्पाद-वाला और विनाश-वाला जानना चाहिए ।
यहाँ सब निरवद्य (निर्दोष, निर्बाध, अविरुद्ध) है, क्योंकि द्रव्य और पर्यायों का अभेद (अभिन्नपना) है ॥११॥