GP:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 136 - अर्थ
From जैनकोष
जब चित्त का आश्रय पाकर क्रोध, मान, माया, लोभ जीव को क्षुब्ध करते हैं; तब उसे ज्ञानी कलुषता कहते हैं ।
जब चित्त का आश्रय पाकर क्रोध, मान, माया, लोभ जीव को क्षुब्ध करते हैं; तब उसे ज्ञानी कलुषता कहते हैं ।