GP:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 138 - अर्थ
From जैनकोष
(चार) संज्ञायें, तीन लेश्यायें, इन्द्रियों की अधीनता, आर्त और रौद्र ध्यान, दुष्प्रयुक्त ज्ञान और मोह, ये पापप्रद हैं ।
(चार) संज्ञायें, तीन लेश्यायें, इन्द्रियों की अधीनता, आर्त और रौद्र ध्यान, दुष्प्रयुक्त ज्ञान और मोह, ये पापप्रद हैं ।