GP:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 75 - समय-व्याख्या - हिंदी
From जैनकोष
स्कन्धों में 'पुद्गल' ऐसा जो व्यवहार है, उसका यह समर्थन है ।
- जिनमें षट्-स्थान-पतित (छह स्थानों में समावेश पानेवाली) वृद्धि-हानि होती है ऐसे स्पर्श-रस-गन्ध-वर्ण-रूप गुण-विशेषों के कारण (परमाणु) 'पूरण-गलन' धर्म-वाले होने से
- स्कन्ध-व्यक्ति के (स्कन्ध-पर्याय के) आविर्भाव और तिरोभाव की अपेक्षा से भी (परमाणुओं में) 'पूरण-गलन' घटित होने से परमाणु निश्चय से 'पुद्गल' है । स्कन्ध तो अनेक-पुद्गल-मय एक-पर्याय-पने के कारण पुद्गलों से अनन्य होने से व्यवहार से 'पुद्गल' है;
- बादर-बादर
- बादर
- बादर-सूक्षम
- सूक्ष्म-बादर
- सूक्ष्म
- सूक्ष्म-सूक्ष्म
- काष्ठ-पाषाणादिक (स्कन्ध) जो कि छेदन होने पर स्वयं नहीं जुड़ सकते वे (घन पदार्थ) बादर-बादर हैं;
- दूध, घी, तेल, जल, रस, आदि (स्कन्ध) जो कि छेदन होने पर स्वयं जुड़ जाते हैं वे (प्रवाहि पदार्थ) बादर हैं;
- छाया, धुप, अन्धकार, चांदनी आदि (स्कन्ध) जो कि स्थूल ज्ञात होने पर भी जिनका छेदन, भेदन अथवा (हस्तादी द्वारा) ग्रहण नहीं किया जा सकता, वे बादर-सूक्ष्म हैं
- स्पर्श-रस-गन्ध-शब्द जो कि सूक्ष्म होने पर भी स्थूल ज्ञात होते हैं (अर्थात् चक्षु को छोड़कर चार इन्द्रियों के विषय-भूत स्कन्ध जो कि आँख से दिखाई न देने पर भी स्पर्शनेन्द्रिय द्वारा स्पर्श किया जा सकता है) जीभ द्वारा जिनका स्वाद लिया जा सकता है, नाक से सूंघा जा सकता है वे सूक्ष्म-बादर हैं;
- कर्म-वर्गणादि (स्कन्ध) की जिन्हें सूक्ष्म-पना है तथा जो इन्द्रियों से ज्ञात न हों ऐसे वे सूक्ष्म हैं;
- कर्म-वर्गणा से नीचे के (कर्म-वर्गणातीत द्वि-अणुक-स्कन्ध तक के स्कन्ध) जो की अत्यन्त सूक्ष्म हैं वे सूक्ष्म-सूक्ष्म हैं ॥७५॥