GP:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 76 - समय-व्याख्या - हिंदी
From जैनकोष
यह, परमाणु की व्याख्या है ।
पूर्वोक्त स्कन्ध-रूप पर्यायों का जो अंतिम भेद (छोटे-से-छोटा अंश) वह परमाणु है । और वह तो, विभाग के अभाव के कारण अविभागी है; निर्विभाग / एक-प्रदेशी होने से एक है । मूर्त-द्रव्य-रूप से सदैव अविनाशी होने से नित्य है । अनादि-अनन्त रुपादि के परिणाम से उत्पन्न होने के कारण *मूर्ति-प्रभव है । और रुपादि के परिणाम से उत्पन्न होने पर भी अशब्द है ऐसा निश्चित है, क्योंकि शब्द परमाणु का गुण नहीं है तथा उसका (शब्द का) अब (७९ वीं गाथा में) पुद्गल-स्कन्ध-पर्याय-रूप से कथन है ॥७६॥
*मूर्ति-प्रभव = मूर्त-पने-रूप से उत्पन्न होने वाला, अर्थात् रूप-गन्ध-रस-स्पर्श के परिणाम-रूप से जिसका उत्पाद होता है ऐसा । मूर्ति=मूर्त-पना