GP:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 77 - समय-व्याख्या - हिंदी
From जैनकोष
परमाणु भिन्न-भिन्न जाति के होने का खण्डन है ।
मुर्तत्व के कारण-भूत स्पर्श-रस-गन्ध-वर्ण का, परमाणु से आदेश-मात्र द्वारा ही भेद किया जाता है । वस्तुत: तो जिस प्रकार परमाणु का वही प्रदेश आदि है, वही मध्य है और वही अंत है, उसी प्रकार द्रव्य और गुण के अभिन्न प्रदेश होने से, जो परमाणु का प्रदेश है, वही स्पर्श का है, वही रस का है, वही गन्ध का है, वही रूप का है । इसलिए किसी परमाणु में गन्ध-गुण कम हो, किसी परमाणु में गन्ध-गुण और रस-गुण कम हो, किसी परमाणु में गन्ध-गुण, रश-गुण और रूप-गुण कम हो, तो उस गुण से अभिन्न प्रदेशी परमाणु ही विनष्ट हो जाएगा । इसलिए उस गुण की न्यूनता युक्त (उचित) नहीं है । (किसी भी परमाणु में एक भी गुण कम हो तो उस गुण के साथ अभिन्न प्रदेशी परमाणु ही नष्ट हो जाएगा, इसलिए समस्त परमाणु सामान गुण वाले ही हैं, अर्थात् वे भिन्न-भिन्न जाति के नहीं हैं ।) इसलिए पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु-रूप चार धातुओं का, परिणाम के कारण, एक ही परमाणु कारण है (अर्थात् परमाणु एक ही जाति के होने पर भी वे परिणाम के कारण चार धातुओं के कारण बनते हैं), क्योंकि विचित्र ऐसा परमाणु का परिणाम-गुण कहीं किसी गुण की १व्यक्ताव्यक्तता द्वारा विचित्र परिणति को धारण करता है ।
और जिस प्रकार परमाणु को परिणाम के कारण २अव्यक्त गान्धादि गुण हैं ऐसा ज्ञात होता है उसी प्रकार शब्द भी अव्यक्त है ऐसा नहीं जाना जा सकता, क्योंकि एक-प्रदेशी परमाणु को अनेक-प्रदेशात्मक शब्द के साथ एकत्व होने में विरोध है ॥७७॥
१व्यक्ताव्यक्तता = व्यक्तता अथवा अव्यक्तता । प्रगटता अथवा अप्रगटता । (पृथ्वी में स्पर्श, रस, गन्ध और वर्ण यह चारों गुण व्यक्त अर्थात् व्यक्त-रूप से परिणत, होते हैं; पानी में स्पर्श, रस और वर्ण व्यक्त होते हैं और गन्ध अव्यक्त होता है; अग्नि में स्पर्श और वर्ण व्यक्त होते हैं और शेष दो अव्यक्त होते हैं; वायु में स्पर्श व्यक्त होता है और शेष तीन अव्यक्त होते हैं ।)
२जिस प्रकार परमाणु में गंधादि गुण भले ही अव्यक्त-रूप से भी होते तो अवश्य हैं, उसी प्रकार परमाणु में शब्द भी अव्यक्त-रूप से रहता होगा ऐसा नहीं है, शब्द तो परमाणु में व्यक्त-रूप से या अव्यक्त-रूप से बिल्कुल होता ही नहीं है ।