GP:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 80 - समय-व्याख्या - हिंदी
From जैनकोष
यह, परमाणु द्रव्य में गुण-पर्याय वर्तने का (गुण और पर्याय होने का) कथन है।
सर्वत्र परमाणु में रस-वर्ण-गंध-स्पर्श सहभावी गुण होते हैं; और वे गुण उसमें क्रमवर्ती निज पर्यायों सहित वर्तते हैं। वह इस प्रकार :- पाँच रस पर्यायों में से एक समय कोई एक (रस पर्याय) सहित रस वर्तता है, पाँच वर्ण पर्यायों में से एक समय किसी एक (वर्ण पर्याय) सहित वर्ण वर्तता है, दो गंध पर्यायों में से एक समय किसी एक (गंध पर्याय) सहित गंध वर्तता है, शीत-स्निग्ध, शीत-रुक्ष, उष्ण-स्निग्ध और उष्ण-रुक्ष इन चार स्पर्श पर्यायों के युगल में से एक समय किसी एक युगल सहित स्पर्श वर्तता है। इस प्रकार जिसमें गुणों का वर्तन (-अस्तित्त्व) कहा गया है ऐसा यह परमाणु शब्द-स्कंध रूप से परिणमित होने की शक्ति रूप स्वभाव वाला होने से शब्द का कारण है, एक प्रदेशी होने के कारण शब्द पर्याय रूप परिणति नहीं वर्तती होने से अशब्द है, और २स्निग्ध-रुक्षत्व के कारण बन्ध होने से अनेक परमाणुओं की एकत्व परिणति रूप स्कंध के भीतर रहा हो तथापि स्वभाव को नहीं छोडता हुआ, संख्या को प्राप्त होने से (अर्थात परिपूर्ण एक के रूप में पृथक गिनती में आने से) १अकेला ही द्रव्य है ॥८०॥
२स्निग्ध-रुक्षत्व= चिकनाई और रूक्षता
१यहाँ ऐसा बतलाया है कि स्कंध में भी प्रत्येक परमाणु स्वयं परिपूर्ण है, स्वतंत्र है, पर की सहायता से रहित, और अपने से ही अपने गुण पर्याय में स्थित है।