GP:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 89 - समय-व्याख्या - हिंदी
From जैनकोष
यह, आकाश के स्वरूप का कथन है ।
षट्द्रव्यात्मक लोक में १शेष सभी द्रव्यों को जो परिपूर्ण अवकाश का निमित्त है, वह आकाश है, जो कि (आकाश) विशुद्ध-क्षेत्र-रूप है ॥८९॥
१निश्चय-नय से नित्य निरंजन-ज्ञानमय परमानन्द जिनका एक लक्षण है ऐसे अनन्तानन्त जीव, उनसे अनन्त-गुणे पुद्गल, असंख्य कालाणु और असंख्य-प्रदेशी धर्म तथा अधर्म, यह सभी द्रव्य विशिष्ट अवगाह गुण द्वारा लोकाकाश में, यद्यपि वह लोकाकाश मात्र असंख्यप्रदेशी ही है तथापि, अवकाश प्राप्त करते हैं ।