GP:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 91 - समय-व्याख्या - हिंदी
From जैनकोष
जो मात्र अवकाश का ही हेतु है ऐसा जो आकाश उसमें गति-स्थिति-हेतुत्व (भी) होने की शंका की जाय तो दोष आता है उसका कथन है ।
यदि आकाश, जिस प्रकार १अवगाह-वालों को अवगाह हेतु है उसी प्रकार, गति-स्थिति-वालों को गति-स्थिति-हेतु भी हो, तो सर्वोत्कृष्ट स्वाभाविक ऊर्ध्व-गति से परिणत सिद्ध-भगवन्त, बहिरंग-अंतरंग साधन रूप सामग्री होने पर भी क्यों (किस कारण) उसमें, आकाश में, स्थिर हों ? ॥९१॥
१अवगाह= लीन होना, मज्जित होना, अवकाश पाना ।