GP:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 99 - समय-व्याख्या - हिंदी
From जैनकोष
यह, व्यवहार तथा निश्चय-काल के स्वरूप का कथन है ।
वहाँ, 'समय' नाम की जो क्रमिक पर्याय सो व्यवहार-काल है, उसके आधार-भूत द्रव्य वह निश्चय-काल है ।
वहाँ, व्यवहार काल निश्चय-काल की पर्याय-रूप होने पर भी जीव-पुद्गलों के परिणाम से मापा जाता है- ज्ञात होता है इसलिये 'जीव-पुद्गलों के परिणाम से उत्पन्न होने वाला' कहलाता है, और जीव-पुद्गलों के परिणाम बहिरंग-निमित्तभूत द्रव्यकाल के सद्भाव में उत्पन्न होने के कारण 'द्रव्य काल से उत्पन्न होने वाले' कहलाते हैं । वहाँ तात्पर्य यह है कि -- व्यवहार-काल जीव-पुद्गलों के परिणाम द्वारा निश्चित होता है, और निश्चय-काल जीव-पुद्गलों के परिणाम की अन्यथा अनुपपत्ति द्वारा (अर्थात जीव-पुद्गलों के परिणाम अन्य प्रकार से नहीं बन सकते इसलिये) निश्चित होता है ।
वहाँ व्यवहारकाल *क्षणभंगी है, क्योंकि सूक्ष्म पर्याय मात्र उतनी ही (क्षणमात्र जितनी ही, समयमात्र जितनी ही) है, निश्चय-काल नित्य है, क्योंकि वह अपने गुण-पर्यायों के आधार-भूत द्रव्य-रूप से सदैव अविनाशी है ॥९९॥
*क्षणभंगी = प्रतिक्षण नष्ट होने वाला, प्रतिसमय जिसका ध्वंस होता है ऐसा, क्षणभंगुर, क्षणिक ।