GP:प्रवचनसार - गाथा 66 - तत्त्व-प्रदीपिका - हिंदी
From जैनकोष
अब, इसी बात को दृढ़ करते हैं :-
यहाँ यह सिद्धांत है कि - भले ही दिव्य वैक्रियिकता प्राप्त हो तथापि 'शरीर सुख नहीं दे सकता'; इसलिये, आत्मा स्वयं ही इष्ट अथवा अनिष्ट विषयों के वश से सुख अथवा दुःखरूप स्वयं ही होता है ॥६६॥